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एम.के. मुथु: करुणानिधि के बड़े बेटे की गुमनाम कहानी और तमिल राजनीति में असफल उत्तराधिकारी की विरासत

परिचय

एम.के. मुथु (M.K. Muthu) तमिल सिनेमा और राजनीति के ऐसे नाम हैं जिन्हें इतिहास ने धीरे-धीरे भुला दिया, लेकिन जिनकी कहानी बेहद रोचक और प्रेरणादायक है। वे तमिलनाडु के दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि के सबसे बड़े पुत्र थे। एक समय था जब उन्हें सुपरस्टार बनने की पूरी तैयारी थी—फिल्में, गाने और मंच पर दमदार उपस्थिति। परन्तु राजनीति, पारिवारिक समीकरणों और समय के बदलते समीकरणों ने उन्हें सुर्खियों से दूर कर दिया।

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

एम.के. मुथु का जन्म 14 जुलाई 1948 को हुआ था। वे करुणानिधि और पद्मावती के बेटे हैं। करुणानिधि अपने वक्त के सबसे ताकतवर राजनीतिज्ञों में गिने जाते थे, और उन्होंने तमिल सिनेमा के ज़रिए ही राजनीति में प्रवेश किया था। यही वजह थी कि करुणानिधि ने मुथु को भी फिल्मों में स्थापित करने का सपना देखा।

फिल्मी करियर: उम्मीदों का उदय

1970 के दशक की शुरुआत में मुथु ने तमिल फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। उन्हें लॉन्च करने के पीछे एकमात्र उद्देश्य यह था कि वे एम.जी. रामचंद्रन (MGR) की लोकप्रियता को टक्कर दे सकें। MGR उस समय न केवल सुपरस्टार थे, बल्कि डीएमके (DMK) के विरोधी और एआईएडीएमके (AIADMK) के संस्थापक बन चुके थे।मुथु के मूवी बोहत अच्छी अच्छी फिल्म बनाते थे

मुथु की कुछ शुरुआती फिल्में जैसे “Pillaiyo Pillai”, “Samayalkaran”, “Anayavilaku”, और “Pookkari” ने दर्शकों को आकर्षित किया। उन्होंने अपने गानों के लिए खुद की आवाज़ भी दी, जिससे उन्हें अभिनेता के साथ-साथ गायक के रूप में भी पहचाना गया। हालांकि अभिनय में वे कभी MGR जैसी लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाए।

राजनीतिक मोड़ और दूरी

राजनीतिक समीकरणों और परिवार के भीतर के मतभेदों ने मुथु के करियर को काफी हद तक प्रभावित किया। मुथु और उनके पिता करुणानिधि के बीच संबंधों में खटास आने लगी, खासकर जब करुणानिधि ने अपने दूसरे बेटे एम.के. स्टालिन को राजनीति में आगे बढ़ाना शुरू किया। इसके बाद मुथु ने DMK से दूरी बना ली और राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हो गए।

कुछ समय बाद मुथु ने AIADMK का रुख कर लिया — यानी उस पार्टी का जिससे करुणानिधि का सबसे बड़ा राजनीतिक विरोध था। यह पारिवारिक और राजनीतिक तौर पर बड़ा झटका था। हालांकि AIADMK में भी मुथु को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

गुमनामी और वापसी

1980 के दशक के बाद मुथु धीरे-धीरे गुमनामी में चले गए। उन्हें फिल्मी दुनिया से भी दूरी बनानी पड़ी और राजनीतिक पटल से भी गायब हो गए। कई वर्षों तक मीडिया में उनके बारे में कोई चर्चा नहीं हुई।

2008 में एक चौंकाने वाला मोड़ आया, जब मुथु और करुणानिधि के संबंध फिर से सामान्य हुए। करुणानिधि ने मुथु को सार्वजनिक रूप से अपनाया और वे एक पारिवारिक समारोह में साथ दिखाई दिए। इसके बाद मुथु धीरे-धीरे परिवार के करीब आए और राजनीतिक सक्रियता में भी थोड़ी रुचि दिखाई, हालांकि सार्वजनिक जीवन में पूरी तरह वापसी नहीं की।

आज की स्थिति और विरासत

एम.के. मुथु अब सिनेमा या राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन उनका नाम एक ऐसे शख्स के रूप में लिया जाता है जिसे तमिल राजनीति में एक मजबूत उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया गया था, पर नियति ने उन्हें दूसरी राह पर डाल दिया।

उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि पारिवारिक विरासत और प्रतिभा के बावजूद सफलता हमेशा सुनिश्चित नहीं होती। मुथु के संघर्ष, पारिवारिक दरारें, और फिर से जुड़ने की कहानी भारतीय राजनीति और फिल्मी इतिहास में एक अलग अध्याय है।

निष्कर्ष

एम.के. मुथु की कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता केवल मंच पर नहीं, बल्कि पारिवारिक रिश्तों को संभालने और खुद के प्रति सच्चे रहने में भी होती है। आज भले ही वे किसी मंच पर सक्रिय न हों, लेकिन उनके जीवन की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो सत्ता, प्रसिद्धि और परिवार के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं।

 

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