Maargan 2025: विजय एंथनी की रहस्यमयी थ्रिलर जिसने पारलौकिक शक्तियों और अपराध की दुनिया को मिला दिया
साल 2025 की तमिल फिल्म ‘maargan’ एक ऐसी थ्रिलर फिल्म है जिसने अपने कंटेंट, निर्माण शैली और विषय की गहराई के चलते दर्शकों और समीक्षकों दोनों का ध्यान आकर्षित किया है। यह फिल्म विजय एंथनी के नेतृत्व में बनी है, जिन्होंने न केवल इसमें मुख्य भूमिका निभाई है बल्कि इसका निर्माण और संगीत भी खुद ही किया है। निर्देशक लियो जॉन पॉल की यह पहली डायरेक्टोरियल फिल्म है और उन्होंने इसे एक बहुस्तरीय क्राइम थ्रिलर के रूप में पेश किया है जिसमें सामाजिक मुद्दे, मनोवैज्ञानिक पहलू और एक असाधारण रहस्य का सम्मिलन है।
फिल्म की कहानी चेन्नई में घट रही एक रहस्यमय सीरियल किलिंग की घटनाओं से शुरू होती है। यह हत्याएं सामान्य नहीं हैं बल्कि बहुत ही खास तरीके से की जाती हैं। हत्यारा महिलाओं को एक विशेष प्रकार के केमिकल से इंजेक्ट करता है जिससे उनका शरीर धीरे-धीरे काला पड़ जाता है और अंततः उनकी मृत्यु हो जाती है। इस केमिकल का असर शरीर की नसों और ऊतकों पर इस प्रकार होता है कि मौत अत्यंत दर्दनाक हो जाती है। इन घटनाओं के बीच जब यह सामने आता है कि इस तरह की मौत एक बार पहले भी हो चुकी है, और वह मौत किसी और की नहीं बल्कि एक पूर्व पुलिस अधिकारी ध्रुव की बेटी की थी, तब कहानी एक नए मोड़ पर आ जाती है।
ध्रुव, जो मुंबई में रह रहा था और अपनी बेटी की मौत से पूरी तरह टूट चुका था, अचानक चेन्नई लौटता है जब उसे इस नई घटना की खबर मिलती है। वह जानता है कि उसकी बेटी की मौत एक हादसा नहीं थी और अब यह नई हत्या उसी पैटर्न को दोहरा रही है। ध्रुव खुद छुपकर इस मामले की तह तक जाने का फैसला करता है और अपने पुराने पुलिसिया संपर्कों और अनुभवों के सहारे मामले को सुलझाने की कोशिश करता है। उसकी इस खोज में उसकी मदद करती है इंस्पेक्टर श्रुति और कांस्टेबल काली।
फिल्म की जांच प्रक्रिया बेहद रोचक है। पुलिस टीम सीसीटीवी फुटेज, कॉल रिकॉर्ड्स, घटनास्थल से मिले फोरेंसिक साक्ष्यों और मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग की मदद से हत्यारे तक पहुंचने की कोशिश करती है। धीरे-धीरे यह बात सामने आती है कि इन हत्याओं का मकसद सिर्फ हत्या करना नहीं बल्कि किसी मानसिक विकृति या गहरी नफरत से जुड़ा है। हत्यारा रंगभेद से ग्रस्त है और उसे गहरी नफरत है उन लोगों से जो गोरी त्वचा को समाज में ऊंचा स्थान देते हैं।
फिल्म की यह थीम उसे साधारण थ्रिलर से अलग बनाती है। यहां सिर्फ रहस्य नहीं है बल्कि सामाजिक आलोचना भी है। फिल्म यह सवाल उठाती है कि क्या आज के समाज में गोरी त्वचा को लेकर जो पूर्वाग्रह हैं, वे केवल फैशन तक सीमित हैं या उनकी जड़ें कहीं गहराई में छुपी हुई हैं जो मानसिक बीमारियों को जन्म दे सकती हैं। फिल्म का खलनायक तमिलारिवु, एक पूर्व स्वीमिंग चैंपियन, खुद भी ऐसे अनुभवों से गुजरा है जहां उसे अपनी त्वचा के रंग के कारण तिरस्कार झेलना पड़ा और उसकी प्रेमिका राम्या ने उसे छोड़ दिया। यही मानसिक आघात उसे एक मानसिक रूप से असंतुलित हत्यारे में बदल देता है।
तमिलारिवु की भूमिका में अजय धिषण ने शानदार अभिनय किया है। उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को जीवंत किया है जो मानसिक आघात और गुस्से के बीच झूलता हुआ धीरे-धीरे अपराध की ओर बढ़ता है। वहीं ध्रुव की भूमिका में विजय एंथनी हमेशा की तरह गंभीर और प्रभावशाली नजर आते हैं। उनका किरदार एक ऐसे पिता का है जो न्याय के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है और जिसके पास सामान्य से हटकर ‘सुपरनैचुरल’ शक्ति भी है।
फिल्म का एक विशेष पहलू यह है कि इसमें कुछ पारलौकिक (supernatural) तत्वों को भी शामिल किया गया है। ध्रुव को अपनी मृत बेटी की आत्मा से जुड़ाव महसूस होता है और वह समय-समय पर संकेतों के माध्यम से अपने मिशन में आगे बढ़ता है। यह पहलू दर्शकों को थोड़ी देर के लिए हैरान करता है लेकिन बाद में यह कहानी का अभिन्न हिस्सा बन जाता है।
निर्देशक लियो जॉन पॉल का निर्देशन बेहद प्रभावशाली है। उन्होंने फिल्म की एडिटिंग भी खुद ही की है और फिल्म की गति को बहुत अच्छा बनाए रखा है। पटकथा में ट्विस्ट और टर्न्स हैं जो दर्शक को अंत तक बांधे रखते हैं। संगीत भी विजय एंथनी का ही है और फिल्म में दो गाने प्रमुख हैं – “Solliduma” और “Ulagaye Muzhuvathum Verukkiren” – दोनों गाने कहानी की थीम से मेल खाते हैं और भावनाओं को उभारते हैं।
फिल्म का क्लाइमेक्स अपेक्षा से थोड़ा अलग है। जहाँ दर्शक एक आम थ्रिलर की तरह एक्शन और संघर्ष की उम्मीद करते हैं, वहीं यहां पर क्लाइमेक्स ज्यादा भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर आधारित है। हत्यारा तमिलारिवु के बचपन और मानसिक पीड़ा को दिखाया जाता है और कैसे समाज के व्यवहार ने उसे वह बना दिया जो वह है – यह कहानी को एक गहराई देता है।
जहाँ कुछ समीक्षक इस क्लाइमेक्स को कमजोर मानते हैं, वहीं कुछ इसे फिल्म की सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। फिल्म ने यह साबित किया है कि एक अपराधी के भी अपने दर्द और संघर्ष होते हैं और केवल सजा देना ही समाधान नहीं है।